Friday, September 10, 2010

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

जनजीवन का आधार सतत वह ज्योतिपुंज सविता ही है!
बंजर उपवन करने वाली जलधार सलिल सरिता ही है!!
जो राह दिखाती युग युग से आक्रांत क्लांत मन को!
घनघोर तिमिर में आशा की वह एक किरण कविता ही है!!


जो विपदाओं को सहला दे हम उसको कविता कहते हैं!
जो आकुल मन को बहला दे हम उसको कविता कहते हैं!!
जिसे सुन कर रक्त शिराओं में दौड़े लावा बन कर!
जो चट्टानों को पिघला  दे हम उसको कविता कहते हैं!!


जो राष्ट्र का गौरव गान करे हम उसको कविता कहते हैं!
जो जन जन का उत्थान करे हम उसको कविता कहते हैं!!
जिससे शोभित मानवता के अधरों पर लाली आ जाये!
जो दीपक को दिनमान करे हम उसको कविता कहते हैं!!


कविता मन की गहराई है, कविता केवल परिहास नहीं!
कविता संपूर्ण चेतना है, बस शब्दों का विन्यास नहीं!!
कविता हर युग में मानव मन को प्रतिबिंबित करती आई!
कविता इतिहास बनती है, कविता केवल इतिहास नहीं!!


कविता का मर्म न इसमें है बस हास और परिहास करें!
और कवि का धर्म न इसमें है बस शब्दों का विन्यास करे!!
कवि और कविता ने दिया ज्ञान जो दिया मानवता को!
युग युग तक उसको नमन विश्व का गौरवमय इतिहास करें!!


मेरी कविता मोहताज नहीं आडम्बर और छलावों की!
मेरी कविता मोहताज नहीं प्रतिघातो और दुरावों की!!
मेरी कविता जन मानस के अंतस को छू कर आती है!
मेरी कविता के बहने से चन्दन की खुशबू आती है!!


मेरी कविता सुनने वाला दिनमान चलाता है जीवन!
हर भोर जगाता है कलियाँ हर सुबह खिलाता है उपवन!!
मेरी कविता से उषा के गालों पर लाली आती है!
मेरी कविता अपने दम से अपना इतिहास बनाती है!!

Thursday, April 30, 2009

आज की पीढ़ी में!



फ़ैल रहा आक्रोश आज की पीढ़ी में!
बस हम हैं खामोश आज की पीढ़ी में!!!

नही समझता मनोदशा कोई उनकी?
सिर्फ़ यही है रोष आज की पीढ़ी में!!

कल की पीढी देती कोई दिशा नहीं!
है इसका अफ़सोस आज की पीढ़ी में!!

बिना कर्म के, गौरव की आकांक्षी है!
महज यही है दोष आज की पीढ़ी में!!

भ्रष्ट व्यवस्था हम क्षण भर में बदलेंगे!
कुछ ज्यादा है जोश आज की पीढ़ी में!!

त्रासदी-त्रासदी



मानसिक यंत्रणाओं के अनुवाद-सी!
ज़िन्दगी है महज त्रासदी-त्रासदी!!

मेरे "मैं" का विरोधी हुआ मन स्वतः!
बात क्या हो भला वाद-प्रतिवाद की!!

ढह गया सारा घर देखते-देखते!
नींव बाकी रही मात्र अवसाद की!!

जिस कथानक में हर भूमिका हो लचर!
क्या महत्ता वहाँ मात्र संवाद की!!

लग रही मन की हर भावना आज तो!
क़ैद उन्मुक्त पक्षी के उन्माद-सी!!

जिस्म घायल है!


जिस्म घायल है जान बाकी है!
गो अभी इम्तेहान बाकी है!!

मुल्क की सरहदों पे मिटने को!
मुल्क का ये जवान बाकी है!!

सारी धरती लहुलुहान हुई!
पर अभी आसमान बाकी है!!

मिट गए सारे रंग धुलने से!
बस अमन का निशान बाकी है!!

फ़ैसला दो न जल्दबाजी में!
गर हलफिया बयान बाकी है!!

इसको रौंदा कई वहशियों ने!
फ़िर भी हिन्दोस्तान बाकी है!!

दौरे गर्दिश है हर तरफ़ फ़िर भी!
कौम का स्वाभिमान बाकी है!!

हम न नगमों की तर्ज बदलेंगे!
कर ले जो भी जहान , बाकी है!!

सूर्य का था पुत्र लेकिन!



जब अहम् कवि का किसी की घात से आहत हुआ है!
मत समझिये ये ज़रा-सी बात से आहत हुआ है!!

दे गया युग को अमर कृति कौंच पक्षी का वो जोड़ा!
सामने तपसी के, जो आघात से आहत हुआ है!!

सूर्य का था पुत्र लेकिन सूतके घर में पला था!
था उसे मालूम वो हालात से आहत हुआ है!!

हाथ में था वज्र उसके, साथ सारे देवता थे!
इन्द्र अपने स्वर्ग के परिजातसे आहत हुआ है!!

वो अभी टूटा नही है फ़िर शह देगा समय को!
सामने जो इक ज़रा-सी मात से आहत हुआ है!!

Wednesday, April 29, 2009

आज के हालात में!

सहमी-सहमी है हवा, कैसी घुटन हैं रात में!
कैसे खुलकर साँस लें, दहशत भरे हालात में!!

हर नज़र बेचैन यों, मासूम इक बच्चा कोई!
चौंक जाए सोते-सोते, ज्यों अचानक रात में!!

ढह रही हैं अब निरर्थक मान्यताएं इस तरह!
जैसे गिरती छत पुरानी यकबयक बरसात में!!

लग रहे हैं कैक्टस से, यातनाओं के शिविर!
फ़िर भी ज़िंदा आदमी है, आज के हालत में!!

हर सृजन आक्रान्त, विषधर करा रहा है पाश को!
कूटनीतिक पैतरे हैं, घात में प्रतिघात में!!

रफ्ता-रफ्ता रास्ते ख़ुद!



ख़ुद-ब-ख़ुद आसान सारे मरहले हो जायेंगे!
इक शहादत से हजारों सिलसिले हो जायेंगे!!

दोस्तों मंजिल की दूरी से न घबराना कभी!
रफ्ता-रफ्ता रास्ते ख़ुद काफिले हो जायेंगे!!

सिर्फ़ धरती ही नहीं आकाश भी थर्रायेगा!
अपनी आवाजों के जिस दिन जलजले हो जायेंगे!!

वो जो देते हैं हमेशा धमकियाँ तूफ़ान की!
दूब की मानिंद उनके हौसले हो जायेंगे!!

सब निगल जाएगा लावा तोड़कर चट्टान को!
ये सुलगते ज़ख्म जिस दिन आबले हो जायेंगे!!

गर कदम से यूँ मिलाकर हम कदम चलते रहे!
मेरा दावा है की तय सब फासले हो जायेंगे!!