Wednesday, April 29, 2009

आज के हालात में!

सहमी-सहमी है हवा, कैसी घुटन हैं रात में!
कैसे खुलकर साँस लें, दहशत भरे हालात में!!

हर नज़र बेचैन यों, मासूम इक बच्चा कोई!
चौंक जाए सोते-सोते, ज्यों अचानक रात में!!

ढह रही हैं अब निरर्थक मान्यताएं इस तरह!
जैसे गिरती छत पुरानी यकबयक बरसात में!!

लग रहे हैं कैक्टस से, यातनाओं के शिविर!
फ़िर भी ज़िंदा आदमी है, आज के हालत में!!

हर सृजन आक्रान्त, विषधर करा रहा है पाश को!
कूटनीतिक पैतरे हैं, घात में प्रतिघात में!!

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