Tuesday, April 28, 2009
सारे मज़हब समा सकें जिसमें!
ज़िन्दगी को खुली किताब रखो!
अपनी मुट्ठी में आफ़ताब रखो!!
गर ख़ुशी बे-हिसाब मिल जाये!
साथ में दर्द का हिसाब रखो!!
चाहिए अश्व पर नियंत्रण गर!
कस के पैरों तले रकाब रखो!!
गर विरोधी सभी निरुत्तर हो!
दोस्तों को भी लाजवाब रखो!!
जो हैं जंगो अमन के सौदागर!
इन दरिंदो को बेनकाब रखो!!
सारे मज़हब समां सकें जिसमें!
अपनी आँखों में ऐसे ख्वाब रखो!!
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