आपसे लोग जो मिले होंगे!
उनके चेहरे खिले-खिले होंगे!!
गम का नामोनिशां न हो जिसमें!
साथ बस ऐसे काफिले होंगे!!
ख़ुद को समझे जो नींव का पत्त्थर!
अपनी बुनियाद से हिले होंगे!!
हम न क्योंकर वहां तलक पहुंचे!
लोगों में बस यही गिले होंगे!!
साजिशें मुल्क बांटने की हैं!
आज के गाँव कल जिले होंगे!!
भावना व्यक्त हो निगाहों से!
इसलिए शब्द कम मिले होंगे!!
याचना क्योंकि तय है जब कल से!
यातनाओं के सिलसिले होंगे!!
जिनको गफलत है वो ग़ज़लगो हैं!
ओंठ उन लोगों के सिले होंगे!!
Wednesday, April 29, 2009
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