Tuesday, April 28, 2009

हाँ नए इस साल में!



टूटते इंसान से जज़्बात की बात न कर!
हो सके तो घात पर प्रतिघात की बातें न कर!!

हर तरफ़, कब्रों, जनाजों, अर्थियों का शोर है!
घर, ठिठोली, ब्याह की, बारात की बातें न कर!!

जिसके दम से है रवानी जिन्दगी के खेल में!
बेसबब तू उस लहू की बातें न कर!!

भीष्म सा आहत पड़ा है जो आज रणभूमि में!
नासमझ उससे तो अब शह मात की बातें न कर!!

थरथराते ठण्ड से कीचड़ में लिपटे ये बदन!
कह रहे तूफ़ान औ' बरसात की बातें न कर!!

इतनी दहशत है परिंदे तक शहर के मौन हैं!
इल्तजा है अब तो तू उत्पात की बातें न कर!!

वो हसीं लम्हे जो हमने साथ मिलकर थे जिए!
रख सजाकर दिल में उन लम्हात की बातें न कर!!

ख़ुद समझ मेरे ग़ज़ल औ' गीत के अंदाज़ को!
मुझसे माजी की और मेरे हालत की बातें न कर!!

देख वो किरणें सुनहरी ले सवेरा आ गया!
भूल जा वो काले साए, रात की बातें न कर!!

दब गए जो ज़ख्म उनको बेवजह यूँ मत कुरेद!
हाँ नए इस साल में सदमात की बातें न कर!!


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