Manoj Shrivastava's poems
Jism ki chot se to aankh sajal hoti hai... aur rooh jab gham se karaahe to ghazal hoti hai!
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आज की पीढ़ी में!
त्रासदी-त्रासदी
जिस्म घायल है!
सूर्य का था पुत्र लेकिन!
आज के हालात में!
रफ्ता-रफ्ता रास्ते ख़ुद!
ये किसे मालूम था!
जिनको गफलत है!
क्या करें?
गर मरा शब्द भी!
छेद आकाश में!
द्रौपदी के केश तो!
जान ले बापू!
हर तरफ़ जो आजकल!
सुभाष जयंती पर - नेता जी के नाम!
न्याय की आँख से!
कोहरे में कैद सूरज!
इस मुल्क में जयचंद!
यातना अपमान भी!
हाँ नए इस साल में!
कर्ण बन कर त्याग दे!
सारे मज़हब समा सकें जिसमें!
महज़ सुकरात का डर है!
ग़ज़ल की परिभाषा
Introduction
Wednesday, April 29, 2009
कोहरे में कैद सूरज!
हादसों पे हादसे होते रहे!
फ़िर भी हम ये ज़िन्दगी ढोते रहे!
किस तरह मिलती उन्हें अमराइयाँ!
जो बबूलों की फसल बोते रहे!!
कोहरे में कैद सूरज जब हुआ!
दोपहर तक लोग सब सोते रहे!!
यातना, हालात या कहिये नियति!
आप तो हल में हमें जोते रहे!!
देखकर झरनों में बहने की ललक!
बेसबब हम उम्र भर रोते रहे!!
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