Wednesday, April 29, 2009

ये किसे मालूम था!

ये किसे मालूम था अमृत ज़हर हो जाएगा!
अजनबी मेरे लिए मेरा शहर हो जाएगा!!

आदमी को इस तरह बदलेगी पैसे की हवस!
राहजन मेरे सफर का राहबर हो जाएगा!!

उम्र भर जिसने मुहैया बेघरों को घर किए!
वक्त ये भी आएगा वो दरबदर हो जायेगा!!

दूसरों का घर जलाने की हवस जिसको रही!
उसका घर हर हाल लपटों की नज़र हो जाएगा!!

हाथ में पत्थर थमाने वाले लोगों देखना!
एक दिन सबका निशाना उनका घर हो जाएगा!!

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